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जिन्हे वफ़ा निभानी आई न आज तक ! वो कहते है भक्ति बिना व्यर्थ है जीवन, जिन्हे ख़ुद, जीने की कला आई न आज तक !
कुछ रंग होते है उसके, कुछ रूप होते है, कुछ फ़र्ज़ होते है, कुछ क़र्ज़ होते है !
उन्हें मलाल नहीं होता, कि जीवन में कुछ अधूरा सा रह गया,
कुछ कसक में, कुछ हिचक में ! मौका नहीं मिलता उन्हें फिर, शिकवे मिटाने का मौका नहीं मिलता फिर, उन्हें, अपना बनाने का !
दुआ है खुद से कि, वो अब, रुकने न दे उन्हें, रुक- रुक के जो बहते है, टीस देते है बार-बार, एक बार जो किनारा कर ले तो मैं भी चट्टान बन सकू!
मगर जब न दिखाई देगा मिलो-मिल कोई तो उठ खड़े होने में, "तक़लीफ़" ज़रा कम होगी !
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