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नाज़ुक- सी चंचल तितली,
कभी यहाँ उड़ी, कभी वहाँ उड़ी,
दिल पर अपने काबू ही नहीं,
कभी यहाँ हसीं, कभी वहाँ हसीं !
बातें उसकी अंदाज़ भरी,
पर खुद से है अंजान वही,
खुद हंसती और हँसाती हैं,
जीवन में प्यार लुटाती है !
अंजान है आज ज़माने से,
कुछ रिश्तों से, कुछ नातो से,
हर बात पे कुछ कहना चाहे,
फिर कहके खुद शर्मा जाये !
चाहें कुछ ऐसा, जीवन से,
जो सपना हो, वो सच्चा हो,
जीवन में सब कुछ अच्छा हो,
न हो ख्वाहिश सिमटी- सिमटी,
बाँहों में काश ज़माना हो !
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